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Monday, 6 June 2016

आत्मा की खेती

Ragini Srivastav     04:04:00  No comments

आत्मा की खेती

तथागत एकबार काशी में एक किसान के घर भिक्षा माँगने चले गये। भिक्षा पात्र आगे बढ़ाया। किसान ने एकबार उन्हें ऊपर से नीचे तक देखा। शरीर पूर्णाग था। वह किसान कम पूजक था। गहरी आँखों से देखता हुआ बोला- “मैं तो किसान हूँ। अपना परिश्रम करके अपना पेट भरता हूँ। साथ में और भी कई व्यक्तियों का। तुम क्यों बिना परिश्रम किये भोजन प्राप्त करना चाहते हो?”

बुद्ध ने अत्यन्त ही शान्त स्वर में उत्तर दिया- “ मैं भी तो किसान हूँ। मैं भी खेती करता हूँ। किसान ने आश्चर्य में भरकर प्रश्न किया- ‘फिर ............. आप क्यों भिक्षा माँग रहे हैं?

भगवान् बुद्ध ने किसान की शंका का समाधान करते हुए कहा- “हाँ वत्स! मैं भी खेती करता हूँ। पर वह खेती आत्मा की है। मैं ज्ञान के हल श्रद्धा के बीज बोता हूँ। तपस्या के जल से सींचता हूँ। विनय मेरे हल की हरिस, विचारशीलता फाल और मन नरैली है। सतत् अभ्यास का यान मुझे उस गन्तव्य की और ले जा रहा है। जहाँ न दुख है - न सन्ताप मेरी इस खेती से अमरता की फसल लहलहाती है। तब यदि तुम मुझे अपनी खेती का कुछ भाग दो- और मैं तुम्हें अपनी खेती का कुछ भा दूँ- तो सौदा अच्छा न रहेगा?”

किसान की समझ में बात आ गई और व तथागत के चरणों में अनवरत हो गया।

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