बन्दर मामा बना रहे थे आम के नीचे खाना ,
लड़ा हुआ था पेड़ आम से उसको मिला बहाना ,
खूब गिराए आम पद से अब में बदला लूँगा ,
आम के नीचे खाना इसको नहीं बनाने दूंगा ,
बंदर मामा ने जेसे ही दल में छोंक लगाया ,
आम ने ऊपर में बर्तन से बड़ा सा आम गिराया ,
बर्तन टूटा मामा रूठा रो-रो कर दिखलाया ,फ़ैल गई सब दल ,
आम पर ,मामा को गुस्सा आया ,
तब आम ने मामा को ,बड़े प्यार से ये समझाया ,
खूब तोड़ते आम में व्यर्थ में ,जब पेट भरा होता हे ,
व्यर्थ तोड़ने का फल मामा ऐसा ही होता हे ,
खूब खाओ और खिलाओ मुझ को दुख न होगा ,
व्यर्थ यदि फल तोड़ोगे तो फिर ऐसा ही होगा ,
बन्दर मामा कान पकड़ कर आम के,आम के आगा आया ,
माफ़ करदो आम राजा अब न ऐसा होगा ,
आज से जंगल का रखवाला बन्दर मामा होगा
- दीपक श्रीवास्तव 'नादान'
चंदेरी -जिला अशोकनगर, एमपी
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